Monday, 2 June 2025

गुरु गोरखनाथ: योग सम्राट की महागाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

त्रिकालदर्शी, योगरथी, शिव-स्वरूप महान।
गोरखनाथ कहाए जो, जागे जन के प्रान॥

हिमगिरि के तपवन से, फूटी एक पुकार,
धरती के तम को हर ले, भेजूँ योगाचार!"
शिव ने फूँका मंत्र फिरा, मच्छिंद्र में प्रान,
जन्मे शिष्य गोरख तब, बन भारत का गान॥

ना जाति बंधन, ना कुल नाम,
गोरख का हैं केवल ‘योग’ काम।
शैशव में साधक, मौनी ध्यान,
माँ की गोद, पर ब्रह्म का ज्ञान॥

गुरु मच्छिंद्र ने देखा ध्यान,
ज्योतिर्मय वह साधक जान।
बोल उठे "यह तो है ज्ञान चंदन,
शिव के ही अंश का है स्पंदन!"

दीक्षा दी "अलख निरंजन" का,
सिखलाए मार्ग हठयोग का।
श्वास, चक्र, काया का राज,
गोरख बने महायोगी आज।

"काया ही काशी है" कहकर,
उन्होंने तन को साधन माना।
ना कर्मकांड, ना यज्ञ हवन,
योगमार्ग ही परम सम्माना॥

नासिका में प्राण की लहर,
मूलाधार से सहस्रार की डगर।
कुंडलिनी जागरण का मूल,
गोरख बताएं शिव का फूल॥

"आपे गुरू, आपे चेला" –
अंधश्रद्धा से मुक्त करेला।
विद्या, मन्दिर, शास्त्र द्वार,
मन का ध्यान, यही संसार॥

जात-पांत का खंडन किया,
नारी, शूद्र सबको दिया,
समता, करुणा, ज्ञान का सिंचन,
मानव धर्म को दिया नव चिंतन॥

"गगन मंडल में झूला झूले,
तहाँ बिराजे ज्ञानी।"
ऐसे गूढ़ प्रतीक कहें,
भाषा में गोरख बानी।।

उनके शब्द न केवल पद्य,
बल्कि ब्रह्म का अनुभव अद्य।
शब्द बने जीवंत प्रकाश,
हर मन में खोलें आत्मा का आशा॥

गोरख चले गाँव-गाँव,
उजले पथ और करें ठाँव।
भाषा में बोले देश की बात,
हर दिल को जोड़े साथ-साथ॥

कहीं वे बाबा, कहीं औलिया,
कहीं सिद्ध, कहीं संत कहाए।
सनातन हिन्दू, सभी समुदाय,
गोरख को अपने गुरु बनाए।।

बारह पंथ बने प्रचारक,
नाथों के जग में दीपक।
जोगी, कंफर, अवधूता धारा,
गोरख की अमर ललकारा॥

नेपाल से लेकर कर्नाटक तक,
हिमालय से लेकर सिन्धु तट।
गोरख की बानी, उठे गूँज,
"जाग रे मानव, खुद को पूज!"

शृंगार नहीं बस लौकिक भाव,
परमात्मा से मिलन की चाह।
नारी, नयन, गगन, चाँदनी,
सब योगिक चित्त की रागिनी॥

प्रेम, विरह और आत्म मिलन,
काव्य में रचे ज्ञान के धन।
प्रतीकों में उन्होंने बाँधा,
रहस्य जहाँ शिव-शक्ति साधा॥

गोरखपुर में मठ खड़ा,
आज भी है चेतन बड़ा।
योग, साधना, देश शक्ति,
गोरख परंपरा सदा भक्ति॥

जो बोले वह कर्म बने,
जो जिए वह धर्म बने।
नाथ परंपरा उनका नाम,
जग में गूंजे "गोरख" गान॥

जय हो योगी, ब्रह्म स्वरूप,
गोरखनाथ लोक के भूप।
जिसने घन अज्ञान हटा दिया,
हर आत्मा को शिव का किया।।

भारत भूमि धन्य हुई,
जब योगी ने आँखें खोलीं।
उसके बाद से अब तक,
गूँज रही है गोरख बोली।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

संपर्क सूत्र:

8920597559

mishraraghavendra1990@gmail.com 

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