सनातन संस्कृति का प्रकृति पथ...
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
मातर्भूमिः पुत्रोऽहम् का, अनहद नाद है चेतन का।
पृथ्वी को माँ माना जिसने, वह पंथ सनातन जीवन का।।
न माटी केवल संसाधन है, न वन खनिज का भंडार है,
यह चेतनता का विस्तार है, यह ऋषियों का उपकार है।।
धरती, जल, अग्नि, पवन, गगन पाँच तत्व ही ब्रह्म रूप,
इनमें ही देखा ब्रह्मांड, इनसे ही चलता जग स्वरूप।
अग्निमीळे पुरोहितं की ऋचा, आपो हिष्ठा मयोभुवाः,
सनातन की संकल्पना में, हर अणु है एक हुआ।।
वृक्ष न केवल छाया देते, ये पुण्य के भी आधार हैं,
"दशपुत्रो समो द्रुमः" यह तो स्वयं पुराणों का सार है।
जन्मोत्सव पर वट वृक्ष लगाएँ, विवाह दिवस हो पीपल दान,
एक वृक्ष से लाखों जीवन यही है सनातन की पहचान।।
गौ, नाग, वानर, गरुड़, सब पूजे गए देव समान,
मनु कहते "अहिंसा धर्मः" यही सनातन का प्रधान।
ना हिंसा, ना शोषण, ना छल, जीव मात्र में आत्मा की झलक,
सह अस्तित्व का यह आधार बना प्रकृति के प्रति शुभ ललक।।
गंगा, यमुना, सरस्वती नदियाँ हैं केवल नहीं धाराएँ,
यह तो हैं माँ के स्वरूप जीवन देती अमृत धारा लाएँ।
"गङ्गे यमुने शुद्धयन्तु नः" यह तो प्रार्थना है जल के प्रति,
लेकिन आज इन्हें बनाया केवल नाला और उद्योग की गति।।
भूमिपूजन में माटी की पूजा, यज्ञों में वायु की आरती,
तर्पण में जल की वंदना, हवन में वृष्टि की होती शुभ गति।
हर संस्कार में पर्यावरण जैसे प्राण में प्राण भर जाए,
सनातन धर्म की यह परंपरा जीवन को स्थायी स्वर दे पाए।।
जब दुनिया खोज रही समाधान संकटों में जकड़ा जीवन,
तब सनातन देता शिक्षा प्रकृति से प्रेम है मूल प्रयोजन।
SDGs हों या जलवायु संकट, उत्तर हर काल में एक ही है,
“धर्म: संरक्षणाय प्रकृते:” यही सनातन की गाथा सटीक है।।
आओ लौट चलें उन ग्रंथों की ओर, जहाँ वनों में ऋषियों का वास था,
जहाँ नदी भी देवी मानी गई, और वायु भी प्राण का विश्वास था।
यदि जागेगा फिर से यह भाव, तो पृथ्वी बनेगी स्वर्ग समान,
और विश्व बनेगा सनातनधर्मी प्रकृति के प्रति कृतज्ञ महान।।
@Dr. Raghavendra Mishra
8920597559
(संस्कृत, दर्शन, और भारतीय ज्ञान परंपरा के विद्वान)
JNU, नई दिल्ली
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