योगी आदित्यनाथ सनातन धारा के वाहक(कविता)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
गोरक्षपीठ का दीप जले, योगी बनें जो यशगान,
नाथ परंपरा जाग उठी, उठा पुनः हिंदुस्थान।
राष्ट्रधर्म के ध्वज को लेकर, चले तपस्वी वीर,
भक्ति, योग, सेवा समन्वय, बने जीवन का तीर।।
शिव-सूत्र का भाव लिया, गह लिया योग का मूल,
गोरखनाथ के पदचिन्हों पर, बढ़ा शौर्य का शूल।
वेद पुराणों की छाया में, वह राजपथ पर चला,
सिंहस्वरूप मुनि-ध्यानयुक्त, धर्म राष्ट्र का भला।।
हिंदू होना सरल नहीं है, संस्कृति की भाषा है,
मंदिर, व्रत, संस्कारों में, भारत की परिभाष है।
रामराज्य का स्वप्न लिए, सेवा में दिन रैन,
कान्हा की नगरी संवारी, पुनः चमका काशी चैन।।
न सत्ता का लोभ उन्हें, ना इच्छाओं का जाल,
जन-जन के कल्याण हेतु, कर्म बने सुरताल।
गायत्री, गीता, गोरक्षा तीनों उनके मर्म,
नारी, किसान, बालक सबका, करें सेवा धर्म।।
योग साधना, संयम साधन, नाथों की परिपाटी,
गोरखनाथ की वाणी बनकर, जागे सुधर्म हाथी।
ना कोई जात पात रहा, ना ही संकीर्ण दृष्टि,
एकात्म मानववाद बना, शासन की प्रवृत्ति।।
संस्कृति की थाती को ले, पाठशालाएँ खोल,
वेद विज्ञान समन्वय कर, बढ़े भारत का मोल।
अंत्योदय से आरंभ करे, नित्य धर्म का ज्ञान,
जनसेवा ही मंत्र रहा, योगी का अभियान।।
धर्म न पूजा भर रहे, धर्म बने कर्तव्य,
राम, कृष्ण, शिव सबमें छिपा, राष्ट्रप्रेम का सर्वस्व।
प्रेम, साहस, त्याग लिए, जो करता हित देश,
योगी उसका नाम है, जो करता जनप्रवेश।।
काशी दीपों से दमकी, अयोध्या में शुभ घड़ी,
माथे पर गंगाजल चढ़ा, गौरवशाली कड़ी।
जहाँ जहाँ छाया अंधियारा, पहुँची वहाँ मशाल,
योगी जैसे साधक से, जागा राष्ट्र विशाल।
योग, यज्ञ और राष्ट्रधर्म,
बने जिनका सहज स्वभाव।
योगी वही जो स्वयं तपा,
औरों को दे प्रकाश नाव।।
नाथों की परंपरा जीवित,
रामकाज में लगे हुए।
ऐसे योगी आदित्यनाथ,
भारत भाग्य जगे हुए।।
@Dr. Raghavendra Mishra JNU
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