डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
भारतीय संविधान के निर्माण में जिन महान व्यक्तित्वों का योगदान रहा है, उनमें बेनगल नरसिंह राव (B. N. Rau) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वे एक विधिवेत्ता, न्यायविद्, दार्शनिक चिन्तक और भारतीय संविधान के प्रारूप लेखक (Constitutional Adviser) के रूप में जाने जाते हैं। उनके जीवन और कार्य के विभिन्न आयाम इतिहास, दर्शन, संस्कृति, शिक्षा, राष्ट्रसेवा और संविधान निर्माण का विस्तृत विवरण :
पूरा नाम: बेनगल नरसिंह राव
जन्म: 26 फरवरी 1887, मैंगलोर, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
निधन: 30 नवंबर 1953
पिता: बेनगल रामनाथ राव (प्रसिद्ध चिकित्सक)
भाषा ज्ञान: अंग्रेज़ी, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी, फ्रेंच, जर्मन
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक किया, और बाद में इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Trinity College) से विधि की शिक्षा प्राप्त की।
विधि विशेषज्ञ और संविधान निर्माता
भारतीय संविधान में योगदान:
- बी एन राव को संविधान सभा की मसौदा समिति के लिए संवैधानिक सलाहकार (Constitutional Adviser) नियुक्त किया गया था।
- उन्होंने विश्व के विभिन्न लोकतांत्रिक देशों—जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया—के संविधान का गहन अध्ययन कर भारत के लिए उपयुक्त ढाँचे का सुझाव दिया।
- उन्होंने ही संविधान सभा के सदस्यों को समझाया कि भारत की बहुजातीय, बहुभाषी और बहुधार्मिक समाज में किस प्रकार एक समावेशी संविधान तैयार किया जा सकता है।
बी एन राव की सलाह:
- उन्होंने मौलिक अधिकारों, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, विधायी और कार्यपालिका शक्तियों के पृथक्करण, संघीय ढाँचे आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- संविधान के अनुच्छेदों की कानूनी भाषा और गहराई में वे गजब के पारंगत थे।
दर्शन, संस्कृति और परंपरा से संबंध
बी. एन. राव केवल एक विधिवेत्ता ही नहीं थे, अपितु वे एक संस्कृत भाषा, संस्कृति प्रेमी और दार्शनिक चिन्तक भी थे।
उन्हें संस्कृत शास्त्रों, न्यायशास्त्र और धर्मशास्त्र में गहरी रुचि थी। उन्होंने धर्म, कर्म, न्याय और मानव मूल्यों पर आधारित विधानों का समर्थन किया। उनका दृष्टिकोण पश्चिमी न्यायशास्त्र से अधिक भारतीय मूल्यों पर आधारित समरसता युक्त दर्शन था।
सौंदर्य शास्त्र एवं शिक्षा
- बी एन राव का विचार था कि न्याय केवल नियमों पर आधारित नहीं, बल्कि नैतिकता, समरसता और सौंदर्यबोध पर भी आधारित होना चाहिए।
- उन्होंने संविधान को केवल कानून का दस्तावेज़ न मानते हुए, उसे राष्ट्र की आत्मा और लोकमंगल का मार्गदर्शक माना।
- शिक्षा के क्षेत्र में वे मानते थे कि संविधान को नैतिक मूल्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि नागरिक कर्तव्य-बोध से युक्त हों।
अध्यात्म, योग और जीवन मूल्य
- बी. एन. राव ने भारतीय योग और अध्यात्म को केवल धार्मिक साधना नहीं, बल्कि मानव जीवन का संतुलनकारी तत्त्व माना।
- उन्होंने गीता, उपनिषद और स्मृतियों के सन्दर्भों में यह देखा कि नैतिक शासन और समाज का आधार आध्यात्मिक संतुलन में निहित है।
धर्म, समरसता और राष्ट्रभक्ति
- उन्होंने कभी भी धर्म को विभाजन का साधन नहीं माना, बल्कि धर्म को एक समन्वयकारी और लोककल्याणकारी संस्था माना।
- बी एन राव की राष्ट्रभक्ति स्पष्ट रूप से उनके कार्यों में परिलक्षित होती है वे ब्रिटिश सत्ता के अधीन उच्च पद पर थे, फिर भी भारत की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भर संविधान के पक्षधर बने।
संविधान सेवा और समिति का समन्वय
- संविधान निर्माण के दौरान उनकी भूमिका समिति और विचार-विमर्शों को संतुलित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी कई बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकारा कि बी एन राव द्वारा तैयार प्रारूप संविधान समिति के लिए एक मजबूत आधार बना।
अंतरराष्ट्रीय कार्यक्षेत्र
- वे संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) के पहले भारतीय न्यायाधीश बने।
- उन्होंने अंतरराष्ट्रीय विधि और भारत की सांस्कृतिक गरिमा को विश्वमंच पर प्रतिष्ठित किया।
कृतित्व
- उन्होंने कई विधिक और दार्शनिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं:
- The Indian Constitution: Cornerstone of a Nation
- India’s Constitution in the Making
- Hindu Law: Past and Present
बी एन राव एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनमें शास्त्र और शासन, संविधान और संस्कृति, धर्म और समरसता, तथा न्याय और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय था। वे एक सेतु बने भारत की प्राचीन सांस्कृतिक सनातन चेतना और आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के बीच।
उनकी स्मृति और योगदान को भारत, सभी भारतीय और वैश्विक बौद्धिक समाज सदैव नमन करता है।
@Dr. Raghavendra Mishra JNU
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