राष्ट्रसाधक इन्द्रेश जी की वाणी
(डॉ. इन्द्रेश कुमार जी के राष्ट्रीय विचारों और कार्यों से प्रेरित कविता)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
वंदे मातरम् की जयध्वनि, लेकर चले जो वीर,
संघ-सृजक वो युग नायक, भारत माँ के तीर।
शांति, संवाद, समरसता, जिनका जीवन मूल,
संघ के दीप से जले, राष्ट्रधर्म का फूल।।
एक अल्लाह, एक राम हैं, यही उनका संदेश,
हिंदू-मुस्लिम एक साथ हों, मिटे पुरानी रेश।
वंदे मातरम् गूँजे फिर, मस्जिद की मीनार से,
राष्ट्रप्रेम की बात चले, हो विश्वास अपार से।।
भारत-तिब्बत संग चले, धर्म की हो बात,
चीन की नींदें उड़ गईं, जागा तिब्बत का नात।
बुद्धभूमि की रक्षा को, उठी स्वदेशी धार,
इन्द्रेश जी ने भर दिया, तिब्बत में अंगार।।
कश्मीरी पंडित का दुख हो, या लद्दाख की कथा,
उनकी वाणी ने सुलझाया, हर कोने की व्यथा।
हम सभी भारतीय हैं एक, या शिया-सुन्नी जन,
हर एक को जोड़े राष्ट्र से, हो मानवता का मन।।
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, संग बैठे जब साथ,
प्रेम-दीप फिर जल उठे, पावन हुआ हर हाथ।
न जाति रही, न पंथ की सीमा बाँधे द्वार,
इन्द्रेश जी के प्रेम से, मिटे सभी विकार।।
युवकों में जोश भरें, बुजुर्गों में ध्यान,
सेवा, शिक्षा, स्वदेशी यही उनका अभियान।
भारत माँ की गोद में, फिर से हो श्रृंगार,
गाँव, गरीब, गिरते को दे शक्ति अपार।।
गंगा माँ की रक्षा हेतु, जब वे आगे आए,
प्लास्टिक, प्रदूषण सबके विरुद्ध स्वर बुलंद उठाए।
गंगा सिर्फ जल नहीं, है जीवन की धार,
संघ के रक्षक बन खड़े, करें प्रकृति से प्यार।।
अयोध्या की धरती पर जब, संवाद हुआ आरंभ,
इन्द्रेश जी ने पुल बनाया, प्रेम शाश्वत हुआ प्रारम्भ।
शिया-सुन्नी बोले हमारे भी गौरव हैं राम,
रामलला का मंदिर हो, राम हमारे हैं पहचान।।
वसुधैव कुटुंबकम् कहें, विश्व रहे तम में मौन,
तब भारत का संस्कृति दीप, जले विश्व के हर जोन।
योग, वेद, वेदान्त से, हो मानवता का जयगान,
विश्व को भारत दे रहा, जीवन का सच्चा ज्ञान।।
संघ के सच्चे स्वयंसेवक, नीति, धर्म के धनी,
संघर्षों में भी मुस्कुराएँ, जैसे तपस्वी मुनि।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर, राष्ट्र धर्म में रंगे,
इन्द्रेश जी जैसे कर्मयोगी, युग के संत संगे।।
@Dr. Raghavendra Mishra
8920597559
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