Monday, 2 June 2025

श्रीमद्भगवद्गीता: एक युद्ध शास्त्र के रूप में–

ऑपरेशन सिन्दूर के विशेष संदर्भ में

लेखक: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU

“गीता केवल मोक्ष का मार्ग नहीं, वह वीरता, धर्म और युद्ध-कौशल का अमृत-ग्रंथ है।”

श्रीमद्भगवद्गीता को प्रायः केवल एक धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रन्थ के रूप में देखा जाता है, किन्तु इसके भीतर निहित ‘युद्ध शास्त्र’ का स्वरूप उतना ही बलशाली और प्रेरणादायक है। यह केवल आत्मा और परमात्मा की चर्चा नहीं करती, अपितु स्पष्ट रूप से धर्म की स्थापना हेतु युद्ध करने की प्रेरणा देती है। इसका संदेश केवल उपदेश नहीं है, यह एक आह्वान है, धर्म के पक्ष में, अधर्म के विनाश के लिए संग्राम में उतरने का।

महाभारत का युद्ध और गीता का उद्घोष

महाभारत के भीषण युद्ध के आरम्भ में जब अर्जुन मोहवश अपने धनुष को त्याग देते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं। यही क्षण गीता का जन्म है। यह वही गीता है, जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं:

“धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।” (गीता 2.31)

“धर्म के लिए लड़ा गया युद्ध, क्षत्रिय (योद्धा) का सर्वोच्च कर्म है।”

यह श्लोक न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि आज के भारतीय सैनिकों, सुरक्षाबलों, और राष्ट्रभक्त नागरिकों के लिए भी एक शाश्वत उद्घोष है।

ऑपरेशन सिन्दूर: गीता के युद्ध शास्त्र का साक्षात् रूप:

हाल ही में संपन्न ऑपरेशन ‘सिन्दूर’ में भारतीय सेना ने जिस प्रकार से सटीक रणनीति, अदम्य साहस और राष्ट्रनिष्ठा का प्रदर्शन किया, वह श्रीमद्भगवद्गीता की युद्ध-प्रेरणा का जीवंत उदाहरण है। यह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि यह धर्म-अधर्म के बीच के संघर्ष में गीता के सिद्धांतों की पुनः पुष्टि थी।

“हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं, जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।  तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥” (गीता 2.37)

“मरने पर स्वर्ग मिलेगा और जीतने पर पृथ्वी पर राज्य। इसलिए युद्ध के लिए दृढ़ संकल्प लेकर खड़े हो जाओ।”

भारतीय सैनिकों ने आतंकवाद के विरुद्ध इस युद्ध में यही संकल्प दिखाया। उनका उद्देश्य केवल शत्रु का दमन नहीं था, बल्कि राष्ट्र, धर्म, और मानवता की रक्षा भी था।

गीता के युद्ध शास्त्र के प्रमुख आयाम:

1. धर्म के लिए युद्ध का आह्वान

जब अधर्म, अन्याय और आतंक सिर उठाते हैं, तब गीता युद्ध को पाप नहीं, अपितु धर्म का अनिवार्य माध्यम मानती है।

2. रणनीति और मनोबल का संतुलन

अर्जुन जैसे महान धनुर्धर भी जब मानसिक रूप से विचलित हुए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से युद्ध के लिए तैयार किया। यह नेतृत्व और प्रेरणा का आदर्श है।

3. निष्काम कर्म और निर्भीकता

गीता बार-बार कहती है कि योद्धा को फल की चिंता किए बिना केवल कर्तव्यनिष्ठ होकर युद्ध करना चाहिए।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”(गीता 2.47)

“कर्म में तेरा अधिकार है, फल में नहीं।”

ऑपरेशन सिन्दूर: गीता की शिक्षाओं की पुनर्पुष्टि

भारत की धरती पर जब-जब आतंकवाद और विध्वंसकारी शक्तियाँ सिर उठाती हैं, तब भारतीय सेना गीता के सन्देश को आत्मसात करके रणभूमि में धर्म की स्थापना हेतु अग्रसर होती है। ऑपरेशन सिन्दूर के माध्यम से यह सिद्ध हो गया कि श्रीमद्भगवद्गीता आज भी भारत के सैनिकों की आत्मा और संकल्प का आधार है।

इस अभियान ने यह स्पष्ट कर दिया कि :

“यत्र योगेश्वर: कृष्णो, यत्र पार्थो धनुर्धर:।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥”(गीता 18.78)

“जहाँ श्रीकृष्ण जैसे नायक और अर्जुन जैसे योद्धा हैं, वहाँ विजय, समृद्धि और नीति सदैव रहती है।” आज भारतीय सैनिकों ने इस गीता वाणी को जीवंत कर दिया है।

वर्तमान संदर्भ में गीता की आवश्यकता:

आज भारत बाह्य शत्रुओं के साथ-साथ आंतरिक आतंक, वैचारिक प्रदूषण, और सांस्कृतिक आक्रमण से भी जूझ रहा है। ऐसे समय में गीता केवल मंदिरों और पुस्तकों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। यह हर सैनिक की जेब में, हर युवा की चेतना में, और हर नीति-निर्माता के निर्णय में विद्यमान होनी चाहिए।

युद्ध शास्त्र और विश्व बंधुत्व का समन्वय है गीता: 

श्रीमद्भगवद्गीता केवल ध्यान और मोक्ष का मार्ग नहीं, यह धर्मयुद्ध, राष्ट्ररक्षा और आत्मसम्मान के लिए किया गया उद्घोष है। यह ग्रन्थ हमें समानुभूति और करुणा के साथ-साथ धर्म के लिए रणभूमि में उतरने का साहस भी देता है।

ऑपरेशन सिन्दूर इसका प्रमाण है कि जब एक सैनिक गीता से प्रेरणा लेकर युद्ध करता है, तो वह केवल शत्रु का संहार नहीं करता, बल्कि राष्ट्र की आत्मा की रक्षा भी करता है।

संपर्क:
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र

mishraraghavendra1990@gmail.com

8920597559

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