रामविलास जी: भारतीय नव जागरण के दीपक...
(काव्य-श्रद्धांजलि)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
गांव की मिट्टी से उठे, भारत की शान बने,
दलितों की पीड़ा में, जग का ज्ञान बने।
नहीं थे मात्र नेता, एक विचारधारा थे,
संविधान के पृष्ठों में, साक्षात सहारा थे।।
वह राम के साथ, विलास के भी पार थे,
संघर्ष की ज्वालाओं में, दीपक की धार थे।
जयप्रकाश की क्रांति में जो रक्त से बोले,
वह संसद में भी जनसंघर्ष के रथ पर डोले।।
धर्म का स्वरूप उनके लिए ‘सेवा’ था,
मंदिर हो या मस्जिद सबमें ‘देवता’ था।
योग और आसन उनके लिए शासन था,
जीवन की साधना थी, सत्य के लिए राशन था।
संस्कृति को केवल पर्व नहीं, परिवर्तन कहा,
हर पीड़ित में उन्होंने भारत का दर्शन कहा।
सभ्यता में समता खोजी, सौंदर्य में समाज,
जहाँ न हो कोई ऊँच-नीच, वही हो सच्चा राज।।
शिक्षा को उन्होंने दीपक कहा अंधकार में,
ज्ञान को बाँटा समान भाव के व्यवहार में।
हर हाथ में कलम हो, हर माथे पर तेज आशा,
ऐसा भारत रचने का था उनका उत्तम अभिलाषा।।
जब दलित मंदिर के द्वार से रोका गया,
रामविलास ने वहाँ दीप जलाया।
जब समाज ने पीठ फेर लिया,
तब उन्होंने संविधान का सहारा दिखाया।।
न थे सिर्फ़ एक राज्यमंत्री, न केवल सांसद,
जनता के हृदय में थे कर्मशील, सच्चे साथ संग।
सत्ता उनके पास थी, पर अहंकार नहीं,
हर वर्ग को उन्होंने समझा ‘परिवार’ कहीं।।
हे! रामविलास मर गए पर दीप नहीं बुझा,
उनकी विरासत में न्याय के बीज सदा सुझा।
हर उस बालक की आँख में वह स्वप्न सजाए,
जो कहे ‘मैं भी बनूँगा राम’ अलख जगाए।।
@Dr. Raghavendra Mishra
8920597559
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