*पुराण के अनुसार ॐ (ओम), तीन वेद और तीन अग्नि की उत्पत्ति*
फिर उर्वशीलोककी इच्छासे पुरूरवाने उन तीनों अग्नियर्योद्वारा सर्वदेवस्वरूप इन्द्रियातीत यज्ञपति भगवान् श्रीहरिका यजन किया ॥ ४७ ॥
तेनायजत यज्ञेशं भगवन्तमधोक्षजम्। उर्वशीलोकमन्विच्छन् सर्वदेवमयं हरिम् ॥ ४७
एक एव पुरा वेदः प्रणवः सर्ववाङ्मयः । देवो नारायणो नान्य एकोऽग्निर्वर्ण एव च ॥ ४८
परीक्षित् । त्रेताके पूर्व सत्ययुगमें एकमात्र प्रणव (ॐकार) ही वेद था। सारे वेद-शास्त्र उसीके अन्तर्भूत थे। देवता थे एकमात्र नारायण; और कोई न था। अग्नि भी तीन नहीं, केवल एक था और वर्ण भी केवल एक 'हंस' ही था ॥ ४८ ॥ परीक्षित् ! त्रेताके प्रारम्भमें पुरूरवासे ही वेदत्रयी और अग्नित्रयीका आविर्भाव हुआ। राजा पुरूरवाने अग्निको सन्तानरूपसे स्वीकार करके गन्धर्वलोककी प्राप्ति की ॥ ४९ ॥
पुरूरवस एवासीत् त्रयी त्रेतामुखे नृप। अग्निना प्रजया राजा लोकं गान्धर्वमेयिवान् ॥ ४९
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां नवमस्कन्धे ऐलोपाख्याने चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४॥
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