Wednesday, 15 January 2025

 *सनातन ग्रन्थ/ज्ञान परम्परा में ब्रह्माण्ड/सृष्टि/जगत/पृथ्वी का जन्मतिथि निर्धारण और उत्पत्ति प्रक्रिया*


भारतीय सनातन संस्कृति में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (1) तिथि को सृष्टि का प्रारम्भिक दिवस माना गया है। शास्त्रों का कथन है कि सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण प्रारम्भ किया था। ब्रह्मपुराण में लिखा है-


चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेऽहनि।

शुक्लपक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति ।। (ब्रह्मपुराण)


अर्थात् ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय होने पर सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ किया, और इसीलिए भारतीय काल गणना में इस दिन से नववर्ष के प्रारम्भ की मान्यता है। इस पावन तिथि में ब्रह्मा जी की सविधि पूजा करने के उपरान्त उनसे नववर्ष के शुभ होने की प्रार्थना की जाती हैं-

भगवंस्त्वत्-प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु मे।

सवंत्सरोपसर्गा में विलयं यान्त्वशेषतः ।।(ब्रह्मपुराण)

महाभारत के शान्ति पर्व में भी अग्नि में दी गई आहुति का सूर्य को प्राप्त होना तथा सूर्य से वृष्टि व सृष्टि से अन्न तथा अन्न से प्रजा की उत्पत्ति के प्रमाण मिलते हैं।'

(महाभारत, शान्ति पर्व)

सृष्टि में आदिकाल से ही यज्ञ और मानव का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। श्रीम‌द्भगवद्गीता में मनुष्य जाति के जीवन का प्रारम्भ ही मूलतः यज्ञ से माना गया है।


सहयज्ञाः प्रजा सृष्टवा पुरोवाच प्रजापतिः।

अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्ट कामधुक् ।।

देवान् भवायतानेन ते देवाः भावयन्तु व:।

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ।।

(श्रीमद्भगवत गीता)

अर्थात् ब्रह्मा ने सृष्टि रचना के समय यज्ञ का वैशिष्ट्य दिखलाते हुए मानव जाति की उन्नति और मनोवांछित फलों की प्राप्ति यज्ञ से ही सिद्ध की है। मूलतः यज्ञ, प्रकृति और जीवन को परिपुष्ट करने का एक वैज्ञानिक उपाय है। सूर्यादि देवों का भौतिक सृष्टि के रूप में परिणत होना तथा भौतिक सृष्टि का पुनः देवमय होने का नाम ही यज्ञ है, जो सृष्टि चक्र व सृष्टि प्रक्रिया है।

वर्षों से चली आ रही शतपथ ब्राह्मण की यह सूक्ति यज्ञ संस्कृति का बखूबी वैशिष्ट्य दर्शाती है।

महर्षि मनु ने मनुस्मृति में सृष्टि प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा है कि अग्नि में विधि-विधानपूर्वक दी गई आहुति सूर्यदेव को प्राप्त होती है, तत्पश्चात् उससे वृष्टि होती है. वृष्टि से अन्न उत्पन्न होता है और अन्न से प्रजा की उत्पत्ति होती है-

अग्नौ प्रास्ताहुतिर्ब्रह्मात्रादित्यमुपगच्छति।

आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः।।"

(मनुस्मृति –3/76)

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