सोनभद्र
सोनभद्र की माटी बोले, ऋषियों का वह ज्ञान,
अघोरी साधना में झलके, करुणा का वरदान।
डॉ. राघवेंद्र मिश्र
सोनभद्र की माटी बोले, ऋषियों का वह ज्ञान,
अघोरी साधना में झलके, करुणा का वरदान।
वन-पर्वत के बीच बसे हैं, धर्मों के संकल्प,
प्रकृति-पूजन, योग-तपस्या, और शिव का प्रिय कल्प।
यहाँ जहाँ गुफाएँ कहतीं, आदिम संस्कृति कथा,
रेणुकूट के शिवसंगीत में, बहती शाश्वत व्यथा।
लखनिया की चट्टानों पर, चित्रित जीवन-सार,
गोंड-कोल की वाणी में है, पर्यावरण का प्यार।
नवदुर्गा के मंचों पर है, लोक का उजला रंग,
झूमर-गीतों में गूंज रहा, एकता का प्रसंग।
रामलीला की गूंज कहे, भाषाओं का देश,
सोनभद्र का हर जनजीवन, हो जैसे नवसंदेश।
ना केवल पूजा, ना केवल आस्था का स्थान,
यहाँ सह-अस्तित्व रचता है, धर्मों का विज्ञान।
अघोरी कहें न जात न पंथ, बस जीवन की दृष्टि,
सनातन गाएं मानवता की, प्रेमभरी वो सृष्टि।
उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, सबका यहाँ मिलन,
यह सीमा नहीं, संवाद है, भारत का वह मन।
जहाँ हर पर्व, हर उत्सव, हो सहयोग का स्वर,
यहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ हो, केवल कोई प्रवर।
विश्व की बिखरती दीवारों में, जब संवाद घटा,
सोनभद्र की चेतना लेकर, भारत बने पथदर्शक सुजटा।
योग, तंत्र और ध्यान से, जब हो नव युग का प्रारंभ,
तो इस भूमि की साधना को मिले वैश्विक शुभारंभ।
शोधक आएं, समझें इसको, केवल खनिज नहीं,
यह आध्यात्मिक पुनर्जागरण की संभावनाएँ कहीं।
जब विश्वविद्यालय गहराएं इसकी सांस्कृतिक रेख,
तब सोनभद्र बने विश्वमंच पर भारत की एक नई लेख।
ओ विभाजित विश्व! सुनो अब, यह कोई स्वप्न नहीं,
धर्म जहाँ संवाद बने, वही है मानवता की मही।
भारत की आत्मा बोले जब, सोनभद्र कल्याणी,
तब होगा नवयुग का सूर्योदय, सत्य, प्रेम और वाणी।
@Dr. Raghavendra Mishra
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